इक नजर
गीतिका
मापनी-122 122 122 12
हमें आपकी इक नजर चाहिये।
कयामत भरी बा-असर चाहिये।
बना आशियां हम जहां पर रहें।
हमें प्रेम का वो शजर चाहिये।
न हों बंदिशें ही किसी की जहाँ।
हमें यार ऐसा शहर चाहिये।
जहाँ से हमेशा खुले नैन ये।
अरी जिंदगी! वो सहर चाहिये।
बुझे प्यास ना ही दिलों की कभी।
हमें प्यार में वो कसर चाहिये।
बने प्यार दोनों हदें आखिरी।
हमें प्यार का ये असर चाहिये।
पढे मौन मेरा बिना कुछ कहे।
मुझे आज ऐसा बशर चाहिये।
इषुप्रिय शर्मा’अंकित’
सबलगढ(म.प्र.)