इक दिन तो उस पंछी को उड़़ जाना है।
गज़ल
काफ़िया- आना
रद़ीफ- है
22…..22…..22…..22….22…..2
मन मंदिर में जिसका आना जाना है।
इक दिन तो उस पंछी को उड़़ जाना है।
तन के पिँजरे में वो तब तक रहता है,
जब तक उसका इसमें आबोदाना है।
खुद आया था कैदी बनने पिँजरे में,
इक दिन उसको तोड़ेगा उड़़ जाना है।
आया था जिस दुनियाँ से वो उनका था,
मेरा था ये कहकर दिल बहलाना है।
ऐसे पंछी से मत प्रेमी प्यार करो,
छोड़ेगा तब सिर धुन धुन पछिताना है।
……..✍️ प्रेमी