इक तूं ही है फ़कत मेरी इस नज़र मे।
एक ग़ज़ल आपकी खिदमत मे मुलाइजा फरमाऐ।
गज़ल
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इक तूं ही है फ़कत मेरी इस नज़र मे
कोई ओर नही, तूं देख ज़रा नज़र मे।
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तूं बदल सकता है रास्ता,अपना मगर,
छोड़ू ना साथ मैं तेरा,किसी सफ़र मे।
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खाई कसमे,तुमने उल्फ़त निभाने की
क्यूं छोड़ चला मुझको तन्हा सफ़र मे।
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यादो संग गुजार लुंगी है जो वक्त बुरा
रहुंगी सदा खुश बस तेरी हर ख़बर मे।
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लगा दे लाख इल्ज़ाम वफ़ा पे तूं मेरी
सह लूंगी सज़ा प्यार की इस डगर मे।
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अफ़साना ग़ज़ल ना बन जाऐ “जैदि”
झांक के कोई देखे ज़रा टूटे जिगर मे।
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शायर:- “जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”