इक तुम्हारा ही तसव्वुर था।
मेरी नजरों को आज भी इन्तजार है तेरे आने का।
इक अरसा हुआ है तुमने वादा किया था आने का।।1।।
मुद्दत हुई है दीदार को और ये जां भी है जाने को।
देख लूं तुमको तो गम ना होगा फिर मर जाने का।।2।।
शायद तुमको लगता होगा कि मैं नाराज हूं तुमसे।
नाराजगी नहीं हां गम था तुम्हारे यूं चले जाने का।।3।।
कैसे बताए तुमको तुम्हारे बगैर कैसे जिए है हम।
अल्फाज़ ना है हमारे पास हाले जिंदगी बताने का।।4।।
इक अरसे से हम सफर में तन्हा ही चल रहें है।
हर रंग देखा है हमनें इस बदलते हुए ज़मानें का।।5।।
तन्हाइयों के आलम में इक तुम्हारा ही तसव्वुर था।
तुम हो जाते अकेले दिल तो करता था मर जाने का।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ