इक छोटा सा पुलिसवाला
हाँ जी साहब मैं हूँ इक छोटा सा वो पुलिसवाला
जिसकी नोकरी ने उसका सब कुछ छीन डाला
माना कि अब पढ़ लेते चेहरे मिजाज देखकर के
पर कुछ अपने ही चेहरों ने अनपढ़ कर है डाला
हाँ जी साहब……..
कोई हमारे भी ख्यालों में आज भी जंवा रहता है
वक़्त की आँधी ने यही ख़्याल याद दिला डाला
हाँ जी साहब……..
हमारा दिल दुखाने का जमाने ने सोचा यूँ अक्सर
वीरानों में देखकर भी नहीं किया है कभी उजाला
हाँ जी साहब……….
हमनें उनको भी जमीं से खुरचकर उठाया दोस्तों
जिसे देख अपनों ने उल्टा किया मुँह से निवाला
हाँ जी साहब………..
कभी हम राजपुताना तो कभी जाटलेंड नहीं होते
कभी किसी तरह का भी जातिभेद नहीं निकाला
हाँ जी साहब…………
हमारी जानिब भी देख लो कभी प्यार से दोस्तों
क्योँ दुश्मन समझकर फासला सा कुछ कर डाला
हाँ जी साहब…………..
हमसे हो हज़ार शिकायत पर हमसे महब्बत करों
हमनें भी तुम्हारी खातर परिवार छोड़ सा है डाला
हाँ जी साहब……..
हमारी फ़ितरत का अन्दाज़ा इससे लगाकर देखों
गिरती कितनी बिजलियाँ दिल पे पर हूँ दिलवाला
हाँ जी साहब………
अशोक सपड़ा हमदर्द दिल्ली से