इक ग़ज़ल पढ़ के तुम्हारी
इक ग़ज़ल पढ़ के तुम्हारी ।
बढ़ गई है बेक़रारी.. ।।
नम हैं पलकों के किनारे ।
कुछ निशानी है तुम्हारी।।
ये असर तेरी अदा का,
ग़ज़लों में भी है ख़ुमारी.
खिलते लफ्जों के सुरों में ।
ढल रही है रात सारी ।।
तेरी आँखों के सफर में ।
हमने ये दुनिया बिसारी ।।
हैं दुआएं साथ रखता ।
आज भी भूखा भिखारी ।।
ये नसीबों का अजूबा ।
खेल करता है मदारी ।।
इन भँवों की ओट लेकर ।
है छुपा शातिर शिकारी ।।
तन्हा तन्हा हसरतें हैं ।
राह तकती हैं बेचारी ।।
ये गजल मेरी दुआ के ।
आईने की शक्ल प्यारी ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’