इक ख़वाब ऑंखों को मेरे तर कर जाता है
इक ख़वाब ऑंखों को मेरे तर कर जाता है
ख़वाब के अंगनाई में तू ही तू नज़र आता है ।
देखे मुस्काए बात करे ख़वाब में तू प्यार लिखे
मैं हाँथ बढ़ाऊं तेरी तरफ़ तू दूर चला जाता है।
मैं साथ निभाती हूँ,पर बैठे ही रह जाती हूँ
और तुझ को कोई और बुला ले जाता है।
खोने से डरती हूँ, इस लिए तो चुप मैं रहती हूँ
पाने की सोचूं तो खुद की ओर हाँथ बढ़ जाता है।
मेरी ऑंख को जाना नींदें रुसवा कर गई है
मेरे पलकों पे भी हर पल तू ही तू इतराता है ।
मैं गीले शब के परछाईं से पूछूं तेरा नाम पता
वो हॅंस कर गांव चाॅंद का मुझे बतला जाता है।
~ सिद्धार्थ