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15 Aug 2017 · 1 min read

इकहत्तरवां स्वाधीनता-दिवस

अँग्रेज़ी हुक़ूमत के

ग़ुलाम थे हम

15 अगस्त 1947 से पूर्व

अपनी नागरिकता

ब्रिटिश-इंडियन

लिखते थे हम आज़ादी से पूर्व।

ऋषि-मुनियों का

दिया परिष्कृत ज्ञान

शोध / तपस्या से

विकसित विज्ञान

राम-कृष्ण का

जीवन दर्शन

नियत-नीति-न्याय में

विदुर-चाणक्य का आकर्षण

बुद्ध-महावीर के अमर उपदेश

करुणा और अहिंसा के संदेश

जन-जन तक न पहुँचा सके हम

सूत्र एकता का अटूट न बना सके हम।

अहंकार के अस्त्र -शस्त्र

और स्वहित की परिधि

खींचते गए लकीरें सरहदी

बनते गए क़िले

बंटती रही झील-नदी

राष्ट्रीयता का भाव

रियासती हो गया

सूरमाओं का मक़सद

किफ़ायती हो गया

सरहदी मुल्क़ों से

लुटेरे आते-जाते रहे

कुछ बस गए

कुछ माल-दौलत ले जाते रहे

कुछ जनता के अज़ीज़ हो गए

कुछ इश्क़ के मरीज़ हो गए।

कारवां अनवरत चलते रहे

लोग वक़्त की माँग में ढलते रहे

व्यथित जनमानस को राह दिखाने

सूर-तुलसी-कबीर-चिश्ती-रहीम आये

प्रेम और ज्ञान का सन्देश लेकर

नानक- रैदास -मीरा-जायसी भी छाये।

कश्मीर की वादियों से

कन्याकुमारी में

समुंदर की लहरों तक

कच्छ से कामाख्या तक

एक अन्तः सलिला बही

स्वाधीनता की पावन बयार

देशभर में अलख जगाती रही।

यातना के दौर

आज़ादी के दीवानों ने सहे

अनगिनत किस्से हैं

अपने कहे-अनकहे

हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई

मिल जाओ सब छोड़ बुराई

हो गए मुक़म्मल आज़ादी के सत्तर बरस!

आओ मनाएं इकहत्तरवां स्वाधीनता-दिवस!!

जय हिन्द !!!

# रवीन्द्र सिंह यादव

Language: Hindi
244 Views
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