इंसाफ के ठेकेदारों! शर्म करो !
अरे इंसाफ के ठेकेदारों !
तुम शर्म करो,कुछ शर्म करो ।
निर्दोष ,अभागे कश्मीरी पंडितों,के ,
खून की यूं न नीलामी करो।
उनकी पीड़ित आत्माएं तड़प रही है ,
इंसाफ पाने को ।
जो जोर जुल्म ,हत्याएं ,बलात्कार ,
वहशियाना बर्ताव हुआ उनके साथ ,
तुम्हारे साथ होता तो क्या होता ?
कल्पना करो ।
इंसान की आहोंं से उनके श्राप से डरो।
और कुछ नहीं तो कम से कम ,
भगवान से तो डरो ।
गुनाहों की तो देश में कमी नहीं ,
और हद भी नहीं ।
मगर तुम्हारे इंसाफ की हद है।
कोई कितना भी बड़ा गुनाह करे ,
अब मृत्यु दण्ड भी नही ,
मात्र आजीवन कारावास !
यह तुम्हें काफी लगता होगा ।
मगर यह काफी नहीं।
खुद को पीड़ितों की जगह रखकर सोचो ।
फिर इंसाफ करो ।
पूरी योजना बनाकर ,
संगठन बनाकर ,
जिसने दुश्मन देश से धन कमाया ,
और फिर कश्मीर पर सम्पूर्ण अधिकार ,
जमाने हेतु कश्मीरी पंडितों को ,
उनकी मातृ भूमि से निकाला ।
और भयंकर नृशंस हत्याकांड किया ,
उसे उम्र कैद नहीं फांसी की दरकार थी ।
क्यों बैठे हो ! और कैसे बैठे हो ,
न्यायलय की कुर्सी पर ?
जरा जवाब दो ।
इस घोर ना इंसाफी पर शर्म सार होना चाहिए था ,
तुम्हें !
शर्म करो ! शर्म करो !