‘इंसान’ बनो
‘इंसान’ बनो
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हे, ‘मनुज-जन’ बनो महान;
मत करो कभी , ‘अभिमान’
‘जीवन’ मिला , मुश्किल से;
पूरे कर लो , सारे ‘अरमान’।
‘जिंदगी’ है ये,कठिन सफर;
‘सुख- दुख’है , ‘डगर -डगर’;
‘मन’ में रहे ना , कोई कसर;
करो ‘मानव’ तुम,ऐसे बसर।
मानव तुम भी , इंसान बनो;
जग का तो ,आन-बान बनो;
हित करो , छाया दो सबको;
मत कभी, ‘पग’ वीरान बनो।
चाहे , ‘आसमान’ छू लो तुम;
इंसानियत को मत भूलो तुम;
दो पल का ही तो मेहमान हो;
अब अच्छे कर्म, कबूलो तुम।
सांसे चलती तो,सब जिंदा है;
मानुष हो , या कोई परिंदा है;
लोभ-लालच में , जो है डूबा;
करते सब,उसकी ही निंदा है।
भलाई का, सबको ‘फल’ मिले;
आज नहीं तो जरूर कल मिले;
तन खुश , मन निर्मल रहे सदा;
‘जीवन’ में हमेशा, ये पल मिले।
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स्वरचित सह मौलिक;
…..✍️ पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।