*”इंसान जाग उठा”*
“इंसान जाग उठा”
जीवन के कर्त्तव्य पथ निर्माण कार्य में ,
उन्नति प्रगतिशील विकास की ओर अग्रसर चलता।
प्रारब्ध कर्म बंधनो में बंधकर आगे ही बढ़ते जाता।
इंसान जाग उठा…! ! !
आधुनिकता की भागमभाग दौड़ में,
अपने हक अधिकारों के लिए संघर्षो से जूझता रहता।
इंसान जाग उठा…..! ! !
नियम कानून अर्थ व्यवस्थाओं के बीच में ,
नई पीढ़ियों के साथ कदमताल मिलाकर चलता।
अतीत भूली बिसरी यादों को भुलाकर ,
नये वर्तमान परिस्थितियों में ढलते ही जाता।
इंसान जाग उठा
कोरोना काल में संघर्षो से जूझता रहा ,
सीमित दायरों में कठिन परिश्रम करते हुए दायित्व निभाता।
जीवन की नादानी लापरवाही को सावधानियां बरत सम्हालता।
इंसान जाग उठा
अपने परायों का भेदभाव मिटाकर ,
एकतत्व साक्षी भाव समदृष्टि अपनाता।
विपरीत परिस्थितियों के प्रभावों में खड़े होकर,
हिम्मत साहस जुटा नव इतिहास का निर्माण कराता।
इंसान जाग उठा
तमस अंधियार मिटा उजियाले की ओर ,
देश की उन्नति प्रगतिशील सम्मान की खातिर आगे ही बढ़ते जाता।
इंसान जाग उठा
कर्म क्षेत्र में उतरते हुए कर्म करते हुए अपना भाग्य बनाता।
जीवन में जो कुछ कार्य करते हुए, मंजिल तय कर जाता।
साधना शक्ति तपस्या करने से जीवन सफल बनाता।
इंसान जाग उठा
शशिकला व्यास ✍️