इंसान छोटा अपराध बड़ा
कुछ ख़बरें ऐसी अख़बारों की आँसू भरके लाती हैं।
पूरे परिवार की मौत का जब भी वो किस्सा सुनाती हैं।।
छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी बचपन सूना छोड़ जाते हैं।
तनाव माँ-बाप का होता और कफ़न खुद ओढ़ जाते हैं।।
कूकर्म दुष्कर्म की ख़बरें रोम-रोम खड़ा कर देती हैं।
सच में इंसान को छोटा अपराध को बड़ा कर देती हैं।।
मानसिक विकृति का ये परिणाम है जो तनाव से आती।
संस्कारों की कमी और मानवता का पतन है ये बताती।।
पूरा मोहल्ला अपना था कभी अब परिवार भी न रहा।
सुख-दुख बाँटे जाते थे आपसी वो सरोकार भी न रहा।
रिश्ते-नाते बेमानी लगते हैं स्वार्थ पलता है आजकल।
महत्त्वाकाँक्षी हुआ मानव तनाव चलता है आजकल।।
तनाव में विवेक-शक्ति भी शून्य की राह पकड़ जाती है।
गीदड़ शहर की तरफ भागता है जब मौत आती है।।
चर्चे बड़े हों कमाई कम हो चाहे खर्चे उधार में चलें।
यही सोच सुकून की अंत में फिर है चिता बनके जले।।
परछाई पकड़ने की कोशिश न कर फिसल जाएगा।
अपने ज़मीर से की जंग तूने आत्मा तक हिल जाएगा।।
एक बार छोड़े दिमाग़ के घोड़े तूने खुले तो समझना।
मीलों बेतहासा दौड़ेगा तू चक्कर खाकर गिर जाएगा।।
रिश्ते-नाते जोड़ें बूँद-बूँद से सागर बने इतिहास बने।
पाँचों अँगुली जुड़ें तो मुक्का होने का सच्चा अहसास बने।
एक-दूजे का साथ हिम्मत हौंसला देता क्यों पीछे हटें हम।
एक और एक ग्यारह होकर दोस्ती का राग रटें हम।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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