“इंसान को यहाँ बाटा किसने “(कविता “)
इंसान को यहाँ बाटा किसने (कविता)
फिजाओं में जहर घोला किसने।
कसौटी पर हमें तोला किसने।
हम तो मोहब्बत के व्यापारी हैं।
फिर नफरत की दुकान खोला किसने।
वजूद अपना खोया किसने।
अभावों का रोना रोया किसने।
हम तो अमन के पुजारी हैं।
फिर हिंसा का बीज बोया किसने।
तुम्हे कहा अपना किसने।
तुम्हें सिखाया तपना किसने।
तुम तो ख्वाब सजाने वाले।
फिर तोड़ा अपना सपना किसने।
तुम्हें यहाँ पर टोका किसने।
कुछ करने से रोका किसने।
हम तो सब समझदार हैं।
फिर हमें दिया यहाँ धोखा किसने।
दुवाओ में खलल डाला किसने।
किस्मत पर जड़ा ताला किसने।
हम तो माहिर खिलाड़ी हैं।
फिर हमें नादान बोला किसने।
जाति धर्म सिखाया किसने।
इंसानों को लड़ाया किसने।
भगवान तो एक ही है।
फिर मंदिर मस्जिद बनाया किसने।
पेड़ो को यहाँ काटा किसने।
बच्चों को यहाँ डाटा किसने।
हम तो एकता के पुजारी हैं।
फिर इंसान को यहाँ बाटा किसने।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “