इंसान की फ़ितरत
गलतियां तमाम देखता है दुनिया के,
खुद के लाखों ऐब छिपाता है,
जहाँ भी दिखे नफ़ा अपना,
आपस में करना बैर बताता है,
खुद के दिल मे भले न हो रहम,
गैरों को इंसानियत सिखाता है,
दुसरो को देकर लाख दर्द,
खुश होता है, मुस्कुराता है,
बढ़ रहा हो कोई ऊचाइयों की ओर,
मदद करता नही गिराता है,
किसी की गरीबी पर रहम नही करता,
सीधे सीने में चोट लगाता है,
जहाँ बसता हो आपसी भाईचारा,
नफरतों की आग लगाता है,
बेच देता है इंसानियत अपनी,
फ़ख्त लालच रुपयों का दिखाता है,
घोल देता है ज़हर रिश्तों में,
गैरत अपनी भूल जाता है,
दूसरों को नीचे करने खातिर,
खुद को बहुत ऊंचा बताता है
खाख करता है मोम सी ख्वाहिशें,
खुशियां तमाम बेच आता है,
मेहनत करने की सोचता नही है,
आंखों में कोरे सपने सजाता है
किस्मत में भले मुफ़लिसी हो “विनय”,
खुद को बहुत खुश दिखाता है ।।
– विनय कुमार करुणे