इंसान की फितरत
जल संरक्षण की बात बहुत है इस जहां में करने वाले,
पर इसे बचाने वाले उंगलियों पर गिने जाते हैं,
मौसम और बारिश को दोष देने वाले खुद इसको बर्बाद करते हैं,
और बचाते जो इक इक बूंद इसकी वो ही इसके लिए तरसते हैं,
साफ हुई हवा आज तो कैद हमारी सांसे हो गई,
जब होने लगी गंगा साफ तो आपूर्ति इसकी बन्द हो गई,
पुरखों ने हमारे छोड़ी जो विरासत शान से उसको उड़ाते हैं,
पर अपने वर्तमान की खुशी के लिए भविष्य को दांव पर लगाते हैं,
अरे होने दो आजाद हमें हम कभी नहीं सुधरने वाले है,
होने दो साफ प्रकृति को हम फिर तबाही मचाने वाले है, सोचा खुदा ने मिलेगी किए की सजा इन्हे तो दर्द कुदरत का यह समझेंगे,
पर भूल गया खुदा भी यह इंसा है अपनी फितरत को कभी न बदलेंगे,
रुक जाए यह दुनिया भले पर इंसान रुकने न वाले है,
मिल रहा चाहे कितना ही दर्द हमें,
पर हम इससे भी भयावह तबाही अब मचाने वाले है,
फेकेंगे गंदगी को यूं ही और करेंगे अधिक दूषित पानी और हवा को,
आएगा अब वो भी मंज़र जब सब तैयार होंगे खाक में मिल जाने को