इंसान और कुता
बहुत पहले सलमान खान कि एक मूवी आई थी बीबी नम्बर-1 जिसके समापन का अंतिम संवाद था (इंसान कुत्ता होता है)।
बहुत दिनों तक मैं बीबी नम्बर -1 के पटकथा एव संवादों पर विचार करता रहा जब जब मेरे जेहन में सलमान खान कि बीबी नंबर-1 मूवी का विचार आता मेरे जेहन में एक घटना घूम जाती और तब महसूस होता कि फ़िल्म के अंत का संवाद विल्कुल सही है वास्तव मे इंसान और कुत्ते में कम से कम कोई एक कारण है जो समानता स्थापित करती है।
जो घटना मेरे जेहन में स्प्ष्ट परिलक्षित होती है वह 20 वीं सदी के समापन से दस बारह वर्ष पूर्व कि है गोरखपुर में महादेव झारखंडी में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद कि एक कालोनी निर्माणाधीन थी जिसके एक ठीकेदार गुमान सिंह जी थे ।
दोपहर का समय चिलचिलाती धूप अचानक एक महिला जिसकी उम्र 30 -35 वर्ष ही रही होगी जो स्वंय को आजमगढ़ निवासी बताती रास्ता भटक गई थी उंसे देखने से ऐसा नही लगता कि उसकी मानसिक स्थिति खराब है वह गोरखपुर के संभ्रांत एव प्रतिष्टित व्यक्तियों का संबंधी भी बताती खुद को जिसका कोई प्रभाव नही था।
उस महिला को कुछ मनचले बहका फुसला कर निर्माणाधीन महादेव झारखण्डी कालोनी के एक मकान में ले गए और इंसान के रूप में कुत्तों का जमघट लगना शुरू हुआ ।
एक एक करके एक व्यक्ति उस निरीह महिला के पास जाता और बाहर निकलता यह सिलसिला लगभग पूरे दिन चलता रहा उस महिला कि ऊर्जा को बनाये रखने के लिए अंडे आदि दिए जाते वह बेचारी कच्चे फर्श पर पड़ी अपने किस्मत को ही कोसती ।
जितने भी लोग उस महिला के संसर्ग में आये सभी विवाहित थे मैं भी उस भीड़ का हिस्सा था मेरे साथ सोहाब मियां थे जो कट्टर नवाजी थे सिर्फ उस भीड़ में नंदू और सोहाब मियां ही ऐसे व्यक्ति थे जो इस गिद्धों के भोज के दर्शक थे ।
तब नंदू को पूरा यकीन हो गया कि वास्तव में बीबी नंबर-1 का अंतिम संवाद पुरुष प्रधान समाज मे नारी कि स्थिति और पुरुष कि मानसिकता का ही सत्यार्थ है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।