इंसान ऐसा ही होता है
इंसान इतना ख़ुदग़र्ज़ है
कि ताली एक हाथ से बजा सकता
तो अपने दूसरे हाथ को
बहुत आसानी से नकार देता ,
इसकी फितरत तो देखो
बस उगते सूरज को प्रणाम करो ये कहता
लेकिन मतलब साधते वक्त
डूबते सूरज को भी अर्घ है देता ,
मौकापरस्त तो कमाल का है
अपना काम निकालने के लिए
साम-दाम-दंड-भेद को साथ ले
उसकी भनक उस मौके को भी नहीं लगने देता ,
चालाकी से इतना भरा है
अपनी सारी की सारी धूर्तता
सीधी सादी बेजुबान बेचारी
लोमड़ी के सर है मढ़ देता ,
दिमाग देखिए इसका
ख़ुद तो वफ़ादार हो नहीं सकता
अपनी दिलदारी दिखाकर
कुत्ते को वफ़ादारी का जिम्मा है देता ,
इस इंसान को कभी भी
कोई मात नहीं दे सकता
ये ख़ुद से ही ख़ुद को
रिश्ते-दोस्ती की आड़ में है मात देता ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )