इंसानों का हाल
यह
घर की बैठकों के
एक कोने में
गुलदस्तों में सजे
प्लास्टिक के फूल हैं
इन्हें कोई पानी नहीं देता
इनपर धूल की परतें
जमती रहती हैं
उसे कोई साफ करने का
कष्ट नहीं करता
प्यार से
अपने हाथों में उठाकर
एक निर्मल जल की धार से
उन्हें नहीं धोता
यह तो नकली हैं
असली फूलों की भी
आजकल
यही हालत है
उपवन मुर्झा रहे हैं
इनका रखवाला
माली बाग से
नदारद है
यह तो फिर भी चलिए
पेड़, पौधे, फूल, पत्तियां
हैं
इंसानों का तो
आज के जमाने में
इससे भी बुरा हाल है
वह तो पानी पीने भी
किसी के दर पर जायें तो
दुत्कार दिये जायें
किसी घाट पर जायें तो
धक्का मारकर गिरा
दिये जायें
खुद चेष्टा करें
तो दूषित जल पी न
पायें
आसमान की तरफ देखे तो
सूखे की मार खायें
पसीने की बूंद चखे तो
नमक का जहर
जीभ पर लगते ही
मर जायें
समुन्दर के पास जायें तो
उसका खारा पानी पी न
पायें
झरने के पास जायें तो
उसके तेज प्रभाव में
उसके संग ही कहीं
दूर बह जायें
किसी कुएं के पास जायें तो
उसे सूखा पायें
किसी नदी के पास जायें तो
उसे प्रदूषित पायें
अपने गांव जायें तो
पानी का अकाल पायें
अपने शहर में घूमे तो
बस्तियों का हर एक घर
जलता पायें
अपने घर पहुंचे
तो ठोकर लगाकर
घर के बाहर ही
फेंक दिये जायें।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001