इंसानियत
देखता हूँ अपनों को आरज़ू के पीछे भागते हुवे,
हसरतों, ख्वाहिशों, सपनों और तमन्नाओं को बढ़ाते हुवे,
होती ही होंगी कुछ आरज़ूएँ पूरी उनकी,
पर इंसानियत पीछे छूट उनसें रूठते हुवे।।
मुकेश पाटोदिया
देखता हूँ अपनों को आरज़ू के पीछे भागते हुवे,
हसरतों, ख्वाहिशों, सपनों और तमन्नाओं को बढ़ाते हुवे,
होती ही होंगी कुछ आरज़ूएँ पूरी उनकी,
पर इंसानियत पीछे छूट उनसें रूठते हुवे।।
मुकेश पाटोदिया