इंसानियत
इंसानियत के साथ आज जिंदगी कहां हैं।
सच तो यही हम कहते जानता जहां हैं।
झूठ और फरेब के मन भावों हमें जीना हैं।
आज तो जमाने का फैशन ही इंसानियत है।
मतलब इंसानियत का हमें मालूम बस स्वार्थ हैं।
कविता की लाइनें नीरज से रुक जरा कहती हैं।
आज के दौर में इंसानियत तो वृद्धाश्रम छोड़ आए हैं।
बस समय की रफ्तार यही हम रिश्ते भूल आए हैं।
इंसानियत तो आज परायों के साथ साथ रहती हैं।
जनाब हम आज धन नाम शोहरत के संग रहते हैं।
सच तो यही ढुंढते इंसानियत को हम आज कहां हैं।
बस शब्दों के साथ किताबों में लिखता जहां हैं।
आओ हम भी इंसान और इंसानियत सोचते हैं।
जिसने जन्म दिया हम आज उसके दिल को पूछते हैं।
हां हम इंसानियत के साथ वक्त को भी पहचानते हैं।
हम तुम भी समय के साथ साथ जिंदगी में ढलते हैं।
न रिश्ते न इंसानियत का नाम आज बस स्वार्थ बसा है।
सच जिसने कहा और लिखा वो ही गुनाहगार बना है।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उप्र