इंसानियत
इंसानियत के राह पर
हमें चलना होगा
ठोकरे खा- खा कर
हमें संभालना होगा ।
इंसान इंसानियत के बिन
न होता है इंसान इंसान
मानव मानवता से बड़ा
कोई धर्म न होता भव में।
इंसानियत बसती दिलों में
विद्यमानता में न ही बसती
ऊपर वाला धर्म न देखता
देखता है बस कर्म अपना ।
उद्विग्नता और मुसीबत में
हमें जो ज्ञान मिलती, कभी
भव के किसी भी स्कूल में
वो शिक्षा न मिलती है हमें ।
जिस मानुज के मानस में
इंसानियत होती नहीं तो
वह नर प्राणीहीन होता
सतत मुर्दे के तुल्य होता।
खलक में महान बनने की
चाह हर एक में होती भला
पर पहले नर इंसान बनना
अक्सर लोग भूल जाते यहां ।
आज हर मानुष पैसों के
प्रलोभन में गिर गया है
वह इसके चलते अपने
इंसानियत को खो बैठा है ।
आज भी मनुष्य अगर
निभाने लगते इंसानियत
तो इंसानियत से वृहत्
कोई रिश्ता न होता यहां ।
अमरेश कुमार
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय बिहार