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21 May 2021 · 1 min read

इंसानियत

ये हसरतें ,ये दौलतें ,अब बेमानी साबित हो रही है।
बिन कंधों ये अर्थियां ,अब मजबूर होकर रो रही है।
इंसान का अच्छा काम भी अब काम नही आ रहा है,
घरों में इंसानियत कैद है ,बेफिक्र होकर सो रही है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय

Language: Hindi
Tag: शेर
2 Likes · 2 Comments · 313 Views
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