इंसानियत खो गई
#दिनांक:-6/8/2024
#शीर्षक:-इन्सानियत खो गई
बिछुड़न की रीति में स्वयं को पहचाना
भीडतंत्र में बहुत प्रतिभावान हूँ जाना ।।1।
नयन कोर बहते रहे शायद कभी सूखे
राधा का चोला उतार पार्वती सरीखे ।।2।
तुम गए ठीक से, पर सबकुछ ठीक क्यूँ नहीं गई
इरादे वादे सारे तेरे गए पर याद क्यूँ नहीं गई।।3
सुन्दर सुनीत सुशील सुशोभित सुकोमल
नीरज से नफरत अँकुडी प्रेम उन्नत दो दल ।।4।
पहनकर चैन, कोशिश सुकुन को भूलने की
प्रेम से बगावत, झूठी वजूद झूला झूलने की ।।5।
इंसानियत खो गई बन गए इंसान लाचार
अनुभवहीन की पाठशाला पढ़ते व्यवहार ।।6।
दिखावटपन का बोलबाला बोली में शामिल
इश्क मशहूर किए करके शेरो-शायरी गालिब ।।7।
ब्रह्मांड से चाँद भला क्यूँ कर कोई ला सकता
अधर मुस्कान ही पूरे विश्व में जगमगा सकता ।।8।
कभी किनारे बैठ समन्दर का विलाप सुनने
जल गाता है विरह गीत किसी नए राग धुन मे ।।9।
चोटें मिलीं इतनी, वर्ना प्रेमी बन आहे भरते थे
पूरातन में पत्थर भी कभी मिट्ठी हुआ करते थे ।।10
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(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई