इंद्रधनुष
इंद्रधनुष सी है जिंदगी,
जिसमें बहुरंग हैं,
कोई रंग सुख समृद्धि का प्रतीक है,
तो कोई खतरे की निशानी।
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इन में से एक रंग आज़ादी के दीवानों का भी है,
इस रंग ने फिरंगी सरकार को भी भगा दिया था,
एक रंग प्रेम और,
एक रंग खुशहाली का भी है,
इस तरह
बहुरंगी इंद्रधनुष सी है जिंदगी।
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इस इंद्रधनुष में एक रंग हिंसा का भी है,
जो वैर भाव बढ़ता है धर्म, जाति, संप्रदाय में,
जुदा करता है भाई से भाई को,
धर्म को कर्म से और
फर्ज़ को ईमान से।
बढ़ाता है दिलों के बीच दूरियां,
कराता है खून खराबा और,
मजबूर करता है कूची से कविता उकेरने को।
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काश यह इंद्रधनुष एक रंग का हो जाए,
एक रंग जो प्रतिबिंब हो सत्यता और अहिंसा का,
भाईचारे और एकता का,
काश कुछ ऐसा हो जाए,
ढह जाए वो दीवार जो पैदा हो गई है,
आज के मानस के दिलों पर।
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फैला हो चहुं दिशी में ज्ञान और संस्कार का उजाला,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के बीच,
वैमनस्य की खाई भर जाए,
देशभक्ति सर्वोपरि हो,
मानव को मानव समझा जाए,
भारत एकबार फिर से मानवीयता का परिचय दे,
जिंदगी का इंद्रधनुष एक रंग पर सिमट आए,
और वो रंग हो भाईचारे और सादगी का।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।