इंतज़ार
इश्क़ तुझे भी है कोई अहसास तो जताया होता
तू न आता न सही कोई ख़त तो आया होता
ख़्वाहिशें चाँद सूरज की दिल ने की ही न थी
टूटा ही सितारा कोई मेरी नज़र तो लाया होता
बुझ रही थी शमां-ए-इतंज़ार उदास आँखों में
उम्मीद-ए-चराग़ कोई तुमने तो जलाया होता
सवालात सारे बंद खिड़की से ताकते है मुझे
बेबसी का अपनी कोई सबब तो बताया होता
क़त्ल कर देते हम अपनी तमाम उम्मीदों का
दूर हो जाने का कोई इरादा तो फ़रमाया होता