इंतहा
कैसे-कैसे काँटों से गुजर कर,
गुलशन तक पहुँचे,
इंतहा तब हुई जब गुलशन ने कहा
फूलों का मौसम निकल गया।
कैसे-कैसे रास्तों से गुजर कर,
मंजिल तक पहुँचे,
इंतहा तब हुई जब मंजिल हँसी,
वक्त कब का गुजर गया।
ऐ जिंदगी, तेरा साथ भी खूब रहा,
सफर तमाम उम्र चलता रहा,
न काफिला मिला, न मंजिल मिली,
न हमसफर ही कोई मिला।
दिनांक – १९/०५/२०१८.