इंतज़ार अच्छे दिन का ?
आजकल नकली कारोबार का
बोल बाला है ,
झूठ को छद्म से सच जैसा बनाकर पेश
किया जाता है ,
लोगों के अज्ञान का फायदा उठाकर उन्हें
बहकाया जाता है ,
डरा- धमका कर उन्हे मानसिक यातना देकर
गुलाम बनाया जाता है ,
सद्भाव एवं प्रलोभन के जाल में फंसाकर
उनका आर्थिक , मानसिक एवं शारीरिक
शोषण किया जाता है ,
शासन तंत्र , कानून एवं न्याय भष्ट्राचार के
आगोश में पंगु बनकर रह गया है ,
आम आदमी किकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में
त्रिशंकु बन त्रासदी भोगने विवश हो रह गया है ,
न जाने अच्छे दिन के इंतज़ार में और कितने बुरे दिन देखने पड़ेंगे ?
यह सोचकर मन मसोस मजबूर हो रह गया है।