इंटरनेट युग
सोच लो
अभी भी देखा करो
इंटरनेट बहुत तेज गति से अपने पांव पसार है.
लेकिन वह सबकुछ नहीं है.
मानव/मनुष्य/आदमी/इंसान उसके बनाने और संचालन में एक अहं भूमिका अदा करता है.
मनुष्य ने दूरी जो भौतिक है,
उसे भले कम कर लिया हो.
भाव/विचार और भौतिक सुखों को काफी आहत किया है,
वह जानकारी मनुष्य द्वारा ही समय समय पर अपडेट की जाती है.
ये पूर्ण नहीं है, इसी प्रकार आपके धार्मिक स्थल और अनुष्ठान.
इनके पीछे की कहानी
पर्दे को पर्दाफाश करना जरूरी है.
भले ये किसी का क्षेत्र नहीं है .
फिर भी ठगी से बचने के लिए.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस.
सबके लिए आवश्यक ….