आ लौट के आजा टंट्या भील
आ लौट के आजा टंट्या भील,
तुझे तेरे लोग बुलाते हैं तेरा सुना पड़ा रे
नभ नील तुझे सारे लोग बुलाते हैं,
तरसे हैं मन मेरे बरसे नयन
यह तो करते नमन
अब तो आजा
निर्मल है मन हम गाए आदिवासी भजन,
ओ दादा अब तो दुखड़ा मिटा जा।
वह पुष्प बने अब कील
तुझे तेरे लोग बुलाते हैं
सुखी है नदिया
सुनी है गलियां
जंगल हुआ वीराना
मूक वतन है
कोई न जतन है
लूट रहा है घराना
राजनीति में पीस रहा है समाज
तुझे तेरे लोग बुलाते हैं
आ लौट के आज टंट्या भील
तुझे तेरे लोग बुलाते हैं।।
: राकेश देवडे़ बिरसावादी