आ भी जाओ ना
बहुत हुआ अब आ भी जाओ ना
यूँ सता कर दर्द को और ना बढ़ाओ
बहुत रह लिए अब तन्हा तुम बिन
ये नाराजगी अब ना दिखाओ
बहुत हुआ अब आ भी जाओ ना!
विरान पड़ा है ये मेरा जहाँ
सागर मे से पानी भी अब सुख गया
मेरा मन अब सूखे पनघट सा हो गया
अब वो चहल ना रही घाट पर
कुंज भी अब विरान हो गया
बहुत हुआ अब आ भी जाओ ना!
बहुत पी चुकी हलाहल
अब तो सुधा रस बरसा दो ना
पतझड़ से अब बसंत ला दो ना
गुलजार कर दो मेरा जहान
बहुत हुआ अब आ भी जाओ ना!
अगर प्यार है तो जताते क्यों नहीं
साथ मेरा निभाते क्यों नहीं
छोड़ कर क्या गए तुम
एक बार मुड़ कर देखते क्यों नही
बहुत हुआ अब आ भी जाओ ना!