आ बैठ मेरे पास मन
आ बैठ मेरे पास मन
आ बैठ मेरे पास मन,दो पल तो मुझसे बात कर
असीम कामनाओं से,दो पल जरा विश्राम कर
भटक रहे हो कबसे, अनंत वियाबान में
क्यों झांकते नहीं हो, अपने मकान में
वेशक इस जहां में, बड़ी चकाचौंध है
उड़ने लगे हैं पंख,खाने को चोंच है
कहां तक उड़ोगे, असीमित आसमान में
कितना तुम रहोगे,जग नाशवान में
छोड़ कर जाना है सभी, इस बात का अहसास कर
आनंद हर एक पल का ले, भगवान पर विश्वास कर
हैं असीमित कामनाएं, चलते हुए थक जाएगा
समय है सीमित तुम्हारा,हंस कब उड़ जाएगा
खोल अंतस की दो आंखें, खुद का तो अब दीदार कर
आ बैठ मेरे पास प्यारे,खुद ही से वन्दे प्यार कर