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28 Jul 2021 · 1 min read

आ ना धीरे धीरे

निशा के गुप्प अंधेरे में चांद भी
अपनी कला दिखाएं,क्यों हैं इठलाए
सफेद रोशनी से प्रकृति को रोशन तो कर जाए,
देखो आज तो पेड़ भी शीतल रोशनी देख झुक जाए।

तेरी निशा में तारे भी टिमटिमा कर नाच दिखाएं
प्रकृति भी हमें ये अपना सुन्दर रूप दिखाएं
एक दूसरे से प्रेम करना और निभाना सिखाए
मानो आज तो पेड़ भी चाँद के आगे झुक जाए।

यही हमें जीवन का हर रंग बतलाए
जब जरूरत हो दुसरो के लिए कुछ कर जाएं
ए चाँद तू आज आ जमी पर और फैला शीतलता
जिससे सबक ले संसार की सारी की सारी जनता।

चाँद आज मैं बूढा हो गया हूँ तो तेरी चमक को
रोक नही पाया मैं क्योंकि मेरी ही टहनियों ने
धीरे धीरे कर साथ छोड़ दिया है मेरा अब तो
वजूद ही ख़त्म हो गया मेरा अब मुझे समझ आया।

कि तेरे रास्ते में मेरी परछाई आती थी और तेरी
शीतल रोशनी को में दृढ़ खड़ा हो बाधित करता
आ आज मैं जीवन के अंतिम पड़ाव पर तुझे देता हूँ
सम्मान से राह आ तू मुझ को पार कर सीधा जमी पर।

महका मेरी पृथ्वी को अपनी शीतलता से
प्रेमियों को मिला उनकी प्रमिकाओ से स्वप्न में
आज कुछ रंगत सी बदली हैं पर मेरा अंत निकट हैं
आ धीरे धीरे चाँद तू गगन से पृथ्वी पर।

डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद

Language: Hindi
1 Like · 189 Views
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