आ तुझको बसा लूं आंखों में।
आ तुझको बसा लूं आंखों में।
तू है अलग सा यहां लाखों में।।1।।
तस्वीह पढ़ना भी है कामों में।
बड़ी शिफा है इस के दानों में।।2।।
सुनो बिलाल की आजानों में।
बहुत राहत है उनके गानों में।।3।।
फरिश्ते बैठे है सबके शानो पे।
हिसाब लिखते सब गुनाहों के।।4।।
इंसान मुब्तिला है तू गुनाहों में।
तौबा कर ले सब गंदे कामों से।।5।।
राहत ढूढते हो तुम सामानों में।
बिकता ना है सुकून दुकानों में।।6।।
शानों पे=कंधों पे
ताज मोहम्मद
लखनऊ