आ जाती है मुझको हिचकी :कविता
आजाती है मुझको हिचकी
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चीनी मिट्टी के प्यालों में
मधुर छुअन अहसास नहीं है,
चाय मिली जब कुल्हड़ में तो
मिटी अधर की प्यास यहीं है।
कुल्हड़ से चिपके अधरों ने
कैसा ये जाम पिलाया है,
प्यासे अधरों को चुंबन का
मीठा अहसास दिलाया है।
गोल कपोल किनारे इसके
चुंबन मेरा इसकी चुस्की,
याद करूँ जब बीते पल मैं
आ जाती है मुझको हिचकी।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका -साहिय धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।(मो.-9839664017)