आज़ाद गज़ल
शराब ,कबाब और शबाब चाहिए
ज़र्रे को भी अब आफताब चाहिए।
इसलिए वो इलेक्शन में खड़े हुए हैं
पावर भी उनको बेहिसाब चाहिए।
छिंका टूटा है बिल्ली के भाग से ही
मगर उन्हें तो बस खिताब चाहिए ।
और कितने दिनों रहेंगे सुकून से वो
सबक सिखाने को अज़ाब चाहिए।
फक़त तक़रीर से कुछ नहीं होता
लुभाने को नये लब्बोलुआब चाहिए।
-अजय प्रसाद