आज़ाद गज़ल
आईने अब मुझे चिढ़ाने लगे
हो गया बूढ़ा मैं , बताने लगे ।
क्या करूँ तू बता मैं अब ज़िंदगी
अक़्स अपने ही जब पुराने लगे ।
खौफ़ से रौशनी में जाता नहीं
साया मेरा न अब डराने लगे ।
उम्र का ही असर लगे है मुझे
झुर्रियां चेह्रे पे नज़र आने लगे
चल अजय मान ले हकीक़त तू भी
तेरे अपने भी अब भुलाने लगे ।
-अजय प्रसाद