Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2018 · 2 min read

“आज़ादी”

“आधी रात की आज़ादी की,
सुबह अभी तक मिली नही थी,
दीवारें कई बार हिली,
बुनियादें अब तक हिली नहीं थीं ,
गोरों की गुलामी से निकले तो,
कुछ दीमक ऐसे लिपट गये,
समझ सके ना अर्थ आज़ादी का,
ये शब्दों तक ही सिमट गये थे,
दोष नही था गैरो का,
अपनों से भारत हार गया था,
आज़ादी की खुशियों को ,
बँटवारा ही मार गया था,
मख़मल पर जो बैठे थे,
वो कब फूलो के पार गये?
जिस देशभक्त ने लहू बहाया,
वो मरघट के संसार गये,
तामस बढ़ता जाता था,
नित दिन ही धकेल प्रभा को,
सत्ता की कुर्सी ने रौंदा,
जाने कितनी प्रतिभा को,
ईमानदारों का जीना मुश्किल था,
बेईमानों के बोलबाले थे,
दोनों हाथों से घोटाले में,
लिपटे जीजा साले थे,
उस पेड़ की जड़ को काट रहे थे,
जिसकी डाली पर बैठे थे,
ईमान बहाकर नाली में,
करतूतें काली कर बैठे थे,
गंगा की पावन धरती पर,
धर्मों का ढोंग रचाते थे,
कुछ वोटो,नोटों की खातिर,
दंगे फ़साद करवाते थे,
भाई को भाई से आपस में लड़वाते थे,
किस्मत की दुहाई देते थे,
तक़दीर की चर्चा करते थे,
उन्हें लाल कहें या दलाल कहें,
जो भारत माँ को बेचा करते थे,
वीर शहीदों की कुर्बानी,
का नेता मोल लगाते थे,
सेंक चिताओं पर रोटी,
राजनैतिक भूख मिटाते थे,
कैसी आज़ादी संतानें ,
भूखे नंगे सोती थीं,
देख विवशता भारत माता,
सिसक-सिसक के रोती थीं,
कुछ तलवारें सोयीं थी,
तब भी बंद म्यानों में,
उलझे थे हम जाति -धर्म,
गीता और कुऱानो में,
मोदी जी के गुजरात का मॉडल,
हम सबको भाया,
ना बंदूक उठायी हमने,
ना तलवार चलाया,
मतदाता की ताकत क्या है,
गद्दारो को दिखलाया,
नयी किरण के साथ,
परिवर्तन की बारी आयी है,
एक कड़क चाय की प्याली ने,
सबकी नींद उड़ायी है,
सीख लिया लड़ने का तरीका,
अब असली आजादी पायेंगे,
भारत के उजड़े चमन को,
मिलकर साथ सजायेंगे,
जिसने हमको बहकाया था,
उसको सबक सीखा देंगे,
निज राष्ट्र की रक्षा में हम,
अपना सर्वस्व लूटा देंगे,
धरती माँ के सीने पर,
अब कोई वार नही होगा,
हिंदुस्तान का मातम में,
कोई त्योहार नही होगा,
चोरी घूसखोरी का,
अब बाज़ार नहीं होगा,
वीरों की धरती भारत में ,
भ्रस्टाचार नही होगा “

Language: Hindi
541 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गर कभी आओ मेरे घर....
गर कभी आओ मेरे घर....
Santosh Soni
समय और मौसम सदा ही बदलते रहते हैं।इसलिए स्वयं को भी बदलने की
समय और मौसम सदा ही बदलते रहते हैं।इसलिए स्वयं को भी बदलने की
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
जाने कैसे आँख की,
जाने कैसे आँख की,
sushil sarna
मन का मिलन है रंगों का मेल
मन का मिलन है रंगों का मेल
Ranjeet kumar patre
अगहन कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के
अगहन कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के
Shashi kala vyas
दुनिया बदल सकते थे जो
दुनिया बदल सकते थे जो
Shekhar Chandra Mitra
*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मिट्टी का बस एक दिया हूँ
मिट्टी का बस एक दिया हूँ
Chunnu Lal Gupta
भोजपुरी गाने वर्तमान में इस लिए ट्रेंड ज्यादा कर रहे है क्यो
भोजपुरी गाने वर्तमान में इस लिए ट्रेंड ज्यादा कर रहे है क्यो
Rj Anand Prajapati
गुमनाम रहने दो मुझे।
गुमनाम रहने दो मुझे।
Satish Srijan
सवाल जवाब
सवाल जवाब
Dr. Pradeep Kumar Sharma
विदंबना
विदंबना
Bodhisatva kastooriya
निरंतर खूब चलना है
निरंतर खूब चलना है
surenderpal vaidya
*चलो खरीदें कोई पुस्तक, फिर उसको पढ़ते हैं (गीत)*
*चलो खरीदें कोई पुस्तक, फिर उसको पढ़ते हैं (गीत)*
Ravi Prakash
है अभी भी वक़्त प्यारे, मैं भी सोचूंँ तू भी सोच
है अभी भी वक़्त प्यारे, मैं भी सोचूंँ तू भी सोच
Sarfaraz Ahmed Aasee
बिताया कीजिए कुछ वक्त
बिताया कीजिए कुछ वक्त
पूर्वार्थ
जिसकी जुस्तजू थी,वो करीब आने लगे हैं।
जिसकी जुस्तजू थी,वो करीब आने लगे हैं।
करन ''केसरा''
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
उसकी एक नजर
उसकी एक नजर
साहिल
💐प्रेम कौतुक-291💐
💐प्रेम कौतुक-291💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पाषाण जज्बातों से मेरी, मोहब्बत जता रहे हो तुम।
पाषाण जज्बातों से मेरी, मोहब्बत जता रहे हो तुम।
Manisha Manjari
नदियां
नदियां
manjula chauhan
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
■ जारी रही दो जून की रोटी की जंग
■ जारी रही दो जून की रोटी की जंग
*Author प्रणय प्रभात*
अकेलापन
अकेलापन
भरत कुमार सोलंकी
स्वीकार्यता समर्पण से ही संभव है, और यदि आप नाटक कर रहे हैं
स्वीकार्यता समर्पण से ही संभव है, और यदि आप नाटक कर रहे हैं
Sanjay ' शून्य'
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
Johnny Ahmed 'क़ैस'
पहचान तेरी क्या है
पहचान तेरी क्या है
Dr fauzia Naseem shad
अपने अपने युद्ध।
अपने अपने युद्ध।
Lokesh Singh
Loading...