आख़िर दोषी कौन है?
आँखों से बहते थे आँसू,दिल में थी पीड़ित आहें।
उदित लाचारी पराकाष्ठा,सहायता हीन गिरी बाहें।।
पत्नी बीमार कराहे घर,बिटिया रानी बिलखे भूखी।
लाने को दवा नहीं पैसे,खाने को रोटी ना सूखी।
रहीम करने पहुँचा चोरी,गलत सही निर्णय से दूरी।
चोरी का दुख था पर हारा,हालातों की यह मंजूरी।।
चोरी भी पकड़ी गई अरे!राम भी भीड़ ने बुलवाया।
पीट-पीट कर उस निर्बल को,निर्दय हो अधमरा बनाया।
जनरक्षक भी भक्षक निकले,बिन मरहम हवालात डाला।
चिरनिद्रा में सो गया सुबह,पत्नी बिटिया का रखवाला।
पत्नी दर्द से कराह मरी,बिटिया भूखी ना हुई खड़ी।
घर-आँगन अब शमशान बना,जगत् से टूटी पल में कड़ी।
कैसा धर्म जाति क्षेत्र कहूँ,कारण कार्य का नहीं जाने।
होकर अँधा अपराधी बने,चलन मानव का नहीं जाने।।
कितने रहीम हिंसा की भेंट,प्रतिदिन सोचो चढ़ जाते हैं।
क्या उनके पीछे के निर्भर,हर किसी को नज़र आते हैं।।
आखिर दोषी रहीम मानूँ,भीड़ पुलिस या प्रशासन कहूँ।
या सभी को सही कह दूँ मैं,हालातों को कोसता रहूँ।।
पूछता ईमानदारों से,रहीम बना दोषी कौन है?
एक सौ तीस करोड़ जन चुप,देश की ससंद भी मौन है।।
खुद को मालिक कहने वालो,जिसदिन असली मालिक जागा।
धर्म नियम वैभव माया से,जाए टूट प्रीत का धागा।।
मानव को मानव तुम समझो,गले सभी को आज लगाओ।
कार्य-कारण सदा ही जानो,भेदभाव अँधापन भुलाओ।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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