आहुति
क्या लिखूं कैसे लिखू
कुछ समझ न आये…..
शव्द खो गए से लगते हैं
जज़वात सो गए से लगते हैं….
ये कैसा दौर है
शोर ही शोर है…..
हर ओर है लूट मची
कोई लूट रहा अपनों को,
तो कोई अपनों के लिए
है लूट रहा…..
स्वार्थ अग्नि जल रही
हर आहुति डल रही
छूट न जाये कोई भी
यही होड़ चल रही…..
हिंसा चोरी मक्कारी
चापलूसी का हवन तैयार है….
हर किसी को बस अपनी
बारी का इंतजार है……