आहिस्ता से सुनो
सुनोंगें आहिस्ता से टूटते हुए दिल के तार बजेंगे
गमों में भीगती हुई बरसात के दर्द हजार दिखेंगे
ओढ ली है चादर खामोशियों की मैंने मगर
रीसते हुए जख्मों के निसाँ यहाँ ज़ार ज़ार मिलेंगे
-“अभिधा”
सुनोंगें आहिस्ता से टूटते हुए दिल के तार बजेंगे
गमों में भीगती हुई बरसात के दर्द हजार दिखेंगे
ओढ ली है चादर खामोशियों की मैंने मगर
रीसते हुए जख्मों के निसाँ यहाँ ज़ार ज़ार मिलेंगे
-“अभिधा”