आहत हूॅ
कष्ट बहुत था जीवन मे
और धन का था अभाव
पर ना थके कदम मेरे
दुर्गम राहों पर चल कर
पूर्ण हुए सब ख्वाब मेरे
फिर भी आहत हूॅ मै कि
अपनो की इस भीड मे
डसती क्यों है
हमको ये तन्हाइयां
वो साथ थे तब
कुछ न होकर भी
सबकुछ था
आज सब कुछ होकर भी
कुछ नही है
अगर कुछ है तो
वो है बीते जीवन की स्मृतियाँ
दिनेश कुमार गंगवार