आहट
आती हूँ रात के अंधेरे में इतना
आहिस्ता – आहिस्ता कि मेरे पैरों
की आहट से तुम्हारी नींद
ना खुल जाए |
फिर कैसे सुन लेती हो
तुम मेरे आहट को ,
कहती कुछ नहीं तुमसे
फिर कैसे महसूस कर लेती हो
तुम मेरी चाहत को |
कुछ तुमसे छुपाना चाहूँ तो
कैसे पढ लेती हो मेरी
आँखों को |
कुछ तुम से कहूँ नहीं तो भी
तुम कैसे सुन लेती हो
मेरी धडकनों को |
तुमसे से जितना दूर होना चाहूँ
तॊ क्यों इतना पास आ जाती हो
क्यों……….?