आहट
आज का दिन बहुत ही खुबसूरत निकला था सुरज की पहली किरण के साथ ही पंछीयो की चहचहाहट से जैसे सुबह झुम उठी हो ऐसा आज इसलिए था क्योंकी आज सुबह की पहली बस से चिन्तन अपने गांव जा रहा है पूरे दस साल बाद अपने परिवार से मिलने कई सालो से वह काम के चलते अपने परिवार से दूर शहर में रह रहा था दस साल बाद वह अपने घर अपने परिवार अपने दोस्तो से मिलने जा रहा था सुबह की पहली बस का इन्तजार चिन्तन ऐसे कर रहा था जैसे चकोर बारिश की बून्दो का करते है आखिरकार चिन्तन का इन्तजार खत्म हुआ 9.15 की बस बस अड्डे पर आई कनडेकटर भैया से चिन्तन ने खिड़की की एक टिकट ली ओर अपनी सीट पर बैठ गया घर जाने की खूशी उसके चहरे पर दिखाई दे रही थी खिड़की के पास बैठे चिन्तन को खिडकी से आती हवा अपने पुराने दिनो अपने खेत अपने दोस्तो की ओर ले गई कैसे वह अपने दोस्तो के साथ सुबह -सुबह “गौरी शंकर सीता राम पार्वती शिव सीता राम” की धुन के साथ पूरे गांव में पॖभातफेरी निकाला करते थे ओर फिर दिन में अपने जानवरो को जंगल तरफ घुमाने ले जाते फिर वही दडे की बोर ओर खट्टी-मीठी रैनी खाते खेलते प्यास लगने पर नाले का पानी पीते ओर शाम को वापस सभी अपने जानवरो जंगल से घर की ओर लाते शाम को गांव के सार्वजनिक मंदिर पर जोर जोर से आरती करते रात को खाना खाने के बाद सिलसिला घर में चालू होता था पिताजी ओर काका के जमाने की चर्चा का दौर रात 8-9बजे तक पूरा परिवार दोनो की बातो का आनंद लेते किस्से ऐसे के हंस के पेट दुखने लग जाता दस साल बाद अपनी पुरानी यादो को चिन्तन खिड़की के पास बैठे सोच रहा था अभी गांव को आने मे पूरे 4 घंटे थे बस जिनती तेजी से चलती चिन्तन के चहरे की खुशी ओर बढ़ती जाती ….. कॖमश
सुशील मिश्रा( क्षितिज राज)