आस
या ख़ुदा ये क्यों होता है ?
मेरा ज़मीर क्यों दिल ही दिल मे रोता है ?
बैचेनी सी लगी रहती हरदम क्यों सुक़ून हासिल नही होता है ?
मोहब्ब़त का स़िला बेवफ़ाई क्यों होता है ?
ब़ुलंद हौसले माय़ूसी में क्यों तब्द़ील हो जाते हैं ?
कल तक जो दोस्त थे दुश्मन क्यों बन जाते हैं ?
प़ाक रिश्ते न जाने क्यों नाप़ाक इरादे बन जाते हैं ?
आब़ाद शहर वीऱाने में क्यों बदल जाते हैं ?
मस़र्रत की फिज़ा खौफ़नाक मंज़र में क्यों बदल जाती है ?
हैवानिय़त इंसानिय़त पर क्यों भारी हो जाती है ?
हमदर्दी की जगह चारों तरफ खुदगर्ज़ी क्यों नज़र आती है ?
मास़ूमों और मज़लूमों पर क्यों ज़ुल्म ढाए जाते हैं ?
और क़ातिल बेखौफ़ आजादी से घूमते क्यों नज़र आते हैं ?
इंसाफ़ अद़ना सा होकर क्यों रह गया है ?
और क़ुफ्र सर चढ़कर क्यों बोल रहा है ?
रसूख़ और दौलत का नश़ा क्यों दिम़ाग पर ताऱी है ?
इंसानिय़त फ़क्त सिस़कती हुई क्यों बेचारग़ी है ?
जाने कब होगा तेरा क़रम और खत्म होगें अल़म में डूबे ये मेरे बुरे दिन।
जब उभरेगा अम़न का सूरज उफ़क से और आयेंगें फिर मेरे खुश़ी भरे दिन।