आस की किरण
थी तिमिर से घिरी जिन्दगी यह मेरी
आस की ज्योति अब जगमगाने लगी।
नेह के गांव की हर गली ठाँव की
याद उसकी मुझे और आने लगी।
लौट घर आइये, कहके जिद पर अड़ी।
गिन रही हर घड़ी आस की वो लड़ी।
वेदनाओं का अंतिम पहर है बचा
बाद इसके है अपने मिलन की घड़ी।
फोन में एक संदेश उसका पढ़ा
भावनाएं सभी छटपटाने लगी।
नेह के गांव की हर गली ठाँव की
याद उसकी मुझे और आने लगी।
वेदना से भरे दिन गुजरते रहे।
हम विरह के नए गीत रचते रहे।
याद हमको तड़पकर सताती रही
रोज रोते रहे रोज हँसते रहे।
आज फिर याद उसने मुझे है किया
इसलिए हिचकियाँ और आने लगी।
नेह के गांव की हर गली ठाँव की
याद उसकी मुझे और आने लगी।
उनके दीदार को अब तरसते नयन।
नर्म हाथों की वो मखमली सी छुअन।
मंद शीतल हवाएं चलें जब यहां
जाग उठती हृदय एक मीठी चुभन।
मेरे आने की उसने खबर जो सुनी
वो हिना से हथेली सजाने लगी।
नेह के गांव की हर गली ठाँव की
याद उसकी मुझे और आने लगी।
अभिनव मिश्र अदम्य