आस्था पर प्रहार
आजकल पता नहीं
क्या हो गया लोगों को.
पहले ईश्वरीय शक्ति के सजगता बनाने की बजाय.
आस्था का दोहन करने के बजाय.
अपना पक्ष बनने से पहले.
निसर्ग को.
जवाब और दबाव डालने से पहले.
कुछ सोचते ही नहीं.
.
प्रशंसा के मोहताज़.
भगवान बना लिये / दिये.
नाम से बुलाओ.
फिर उनको
शक्ति याद दिलाओ
पूजा/अर्चना/आराधना
ये रुग्ण/असहाय महसूस कर रहे लोगों के लिए
एक रास्ता हो सकता है.
लेकिन यह पागलपन
सकल भारतवर्ष में.
ये कैसे हो सकता है.
किसी के गुणों से वाकिफ होने के बजाय.
उसे पूजना.
कौन सी कला है.
बुद्धिमत्ता तो बिल्कुल नहीं.
खैर अगर
पूरे परिवार में
एक आध इस बिमारी से दूर रहे तो.
माना.
कोई चारदीवारी पर रोशनदान लगा है.
अंधेरे में बैठे हैं,
अंधकारमय जीवन है.
मतलब.
अंधेरी गुफा में बैठ कर.
रोशनी पर.
कथाएं घड़ी जा रही है.
और कौई बाहर आकर.
साक्षात्कार करने का इच्छुक नहीं.
.
अब नंदलाल को ही देख लो.
सुबह उठो.
उठते ही,
वही दिनचर्या.
.
सुबह एक मास्टर जी.
लगा रखे हैं.
नंदलाल को चार बच्चे.
जिसमें तीन लड़के और एक लड़की.
सभी जगदीश हरे *आरती गाते है.
फिर ट्यूशन पढ़ते है.
मास्टर जी ने भी किसी सत्संगी धारा के तहत नाम ले रखा है.
वे एक बीड़ी के नियम की दिनचर्या पर टिके हैं,
उसे चार बार फूंक कर जलाते और फिर बीडी को कचरे में डालते .
एक तो करेला.
ऊपर से नीम चढ़ा.
.
बच्चे फिर स्कूल जाते.
उसी मास्टर जी.
उदयबीर जी.
वहां उन बच्चों को आगे बुलाकर
अपनी कला को बच्चों से *प्रार्थना के रुप में गायन कराते.
सभी अध्यापक पद पर कार्यरत तो कुछ नहीं कहते.
नंदलाल ने सतपाल जो कि पहला लड़का हुआ.
उस उपलक्ष्य में एक कमरे का निर्माण करवाया था.
.
बड़े होकर सतपाल ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली.
सतबीर ने हत्या की.
वह भी पैसे के लेन देन के एवेज में.
.
इतने संस्कारित बच्चे.
आप समझे
कहाँ हुईं भूल
आप निष्कर्ष निकाले.
लौटते है अगले भाग में
.
ईश जिससे स्वर निकलता है.
शिव श इव
जिस ईश्वर ने मनुष्य की रचना की.
क्या वह मनुष्य भगवान बना सकता है.
अगर नहीं तो
तो ये धार्मिक स्थल किसलिए
क्या है सिद्धांत
कौन है सिद्ध करने वाला.
मन/मस्तिष्क से ऊपर है कुछ नहीं.
तो ये सब क्यों हो रहा है.
जिससे बचाव किया जाना आवश्यक है.
महेन्द्रसिंहहंस