आसमान सा बनों
आसमान सा बनों
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बनना है तो आसमान सा बनों।
कोई भेद नहीं,जाति, धर्म -वेश का,
सब ही एक समान,
गोरे, काले का भेद नहीं,
मिलकर सभी रहते, आसमां की चादर सा बनों ——
नव -युग का निर्माण करो।
नये रंगों को जीवन में भरो,
नये राग को नूतन स्वर दो,
मानुष में चैतनता भर दो,
नये सृजन की कल्पना में।
मिलकर सभी साज छेड़ो,तरंगनी सा बनों ——-
धरा को हम चाहते स्वर्ग बनाना।
स्वर्ग हो कहीं, उसे धरा पर लाना,
चांद, चांदनी,ग्रह , नक्षत्र और
सूरज तारे,
सब हैं हर-पल साथ हमारे,
इनसे हे जीवन उजियारा।
मिलकर सभी रोशनी की , चांदनी सा बनों ———
बन जाओ तुम आसमां सा चादर।
बन जाओ तुम गागर में सागर,
बहती हुई नदियां बनकर,
हर मानुष की प्यास बुझाकर,
कर दो सबको तृप्त तुम।
मिलकर सभी नदियों तुम, सागर सा बनों ———
सुषमा सिंह*उर्मि,,