आसमान में चितकबरे चित्र!
आसमान में
बादलों के चितकबरे चित्र
कभी लगे कि शेर
तो कभी सियार—!
कभी कभी माँ गोद में लिए
नन्हे शिशु को करतीं दुलार
कभी राजा बैठा सिंहासन पर
कभी तपस्वी आसन पर
पढ़ते हजारों लोग नमाज
बच्चों के बीच कभी नाचे सेन्टाक्लाॅज!
गदाधारी हनुमान कहते जय श्री राम
वीर शिवाजी घोड़े पर
कहते आराम हराम
कभी नदी में नाव
बैठा एक मुसाफिर पेड़ की छांव
भारी भरकम हाथी-भारी उसके पांव
कुछ झोपड़ियाँ ज्यों छोटा सा गाँव
देखो भटकता आदमी
उसका ठौर न कोई ठांव
हाँ—
आसमान में एक दुनिया दिखती है
एक जीवन प्रतीत होता है
कोई हँसता है कोई रोता है
कहीं मुनाफा कहीं आदमी सब कुछ खोता है।
अचानक आसमान साफ—
बादल छूमंतर—
आसमान के चित्रों और धरा के जीवन में क्या है कोई अंतर?
यहाँ हम पड़े हुए ऊपर देखते हैं!
और वहां;वह ऊपर से देखता है?
मुकेश कुमार बड़गैयाँ”कृष्ण धर द्विवेदी
mukesh.badgaiyan30@gmail. Com