आसमां से गिरते सितारे का एक लम्हा मैंने भी चुराया है।
आसमां से गिरते सितारे का, एक लम्हा मैंने भी चुराया है,
एक दुआ की ख्वाहिश कर, बोझ को उसके बढ़ाया है।
बादलों में बसे उस शहर में, एक दिन मैंने भी बिताया है,
दरख़्तों की मुलायम छाँव का, एक हिस्सा मेरे हक़ में भी आया है।
खामोशी की स्याही से लिखा, एक ख़त मैंने भी पाया है,
यूँ जज़्बातों की गूंज में सिमटे, अल्फ़ाजों ने मुझे बुलाया है।
कोरे रंग के आँचल पर, एक रंगरेज का साया है,
अब रंगों का कारोबारी हीं जाने, किस रंग में लिपटी काया है।
हौंसले की तीखी धार ने, एक पंछी को यूँ उसकाया है,
कि बंदिशों को तोड़कर उसने, उड़ानों से वफ़ा निभाया है।
किस्मत ने साजिशें कर, सफर को हाथों में बसाया है,
और कहते हैं लोग यहां कि, कहीं रुकना मुझे नहीं आया है।
साहिलों ने मुँह मोड़कर, कश्ती को मेरे ठुकराया है,
दरिया ने मुझे अपना बनाकर, संग लहरों के बहना सिखाया है।