#आश्चर्यजनक ! किंतु, सत्य ! !
🕉
★ #आश्चर्यजनक ! किंतु, सत्य ! ! ★
जर्मनी देश के एक विज्ञानी ने अद्भुत प्रयोग किया। उसने विश्व की प्रमुख भाषाओं की लिपियों के मिट्टी के प्रारूप बनाए, जो कि भीतर से खोखले थे। इनके दोनों छोरों पर एक-एक छिद्र रखा।
यह प्रारूप ठीक वैसे ही थे जैसे कि कुछ समय पूर्व तक अपने देश भारत में मेले-त्योहारों पर मिट्टी की चिड़िया आदि मिला करते थे; जिनके एक ओर से फूंक मारने पर दूसरी ओर से सीटी की ध्वनि निकला करती थी।
उस वैज्ञानिक ने ठीक वैसा ही किया। अब उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि केवल देवनागरी लिपि के प्रारूपों से ठीक वही ध्वनि निकल रही थी जिस अक्षर का वो प्रारूप था। शेष सभी लिपियों में से कोई भी लिपि इस प्रयोग पर खरी नहीं उतरी।
देश भारत की प्रथम पॉकेट बुक ‘हिंद पॉकेट बुक’ द्वारा १९६६ में प्रकाशित पुस्तक ‘आश्चर्यजनक! किंतु, सत्य ‘ नामक पुस्तक में यह वर्णन है। जिसके लेखक संभवतया ‘श्री प्रकाश पंडित’ थे।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२